Menu
blogid : 6615 postid : 42

फांसी ? अरे थोड़ा जल्दी करो भाई

Krishna Gupta
Krishna Gupta
  • 16 Posts
  • 33 Comments

आज कल फांसी के विषय पर काफी चर्चा चल रही है | ढेर सारे अकल्मंदों का मानना है की फांसी की सजा को ख़त्म कर देना चाहिए | सवाल यह नहीं है की किसे आप कितनी सजा देना चाहते हैं |बल्कि सवाल यह है की जो अपराध हुआ, और जिसके ऊपर अपराध किया गया, उसके साथ आप कितना न्याय करना चाहते हैं |

आज कल फैशन हो गया है की कोई भी एरा गैर खुद को मानवाधिकारी साबित करने पर तुल जाता है | मानव क्या है ? मानव के अधिकार क्या होने चाहिए ? कुछ लोगों को लगता ही अपराधियों को बचा कर वे मानवता की बहुत बड़ी सेवा कर रहे हैं | लेकिन वे नहीं जानते या फिर जान बुझ कर अंजन बनना चाहते हैं, कि वे गलत कर रहे हैं | वे जानते हुए की उनका कहना गलत है, फिर भी कहे जाते हैं | क्यों की इससे वे मिडिया अटेंशन पते हैं, और कभी कभी मानवाधिकार के नाम पर धन भी पा जाते हैं |

लेकिन वे यह नहीं सोचते की देश के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा | फांसी होने का मतलब किसी को मारने मात्र से नहीं है | यह तो दर्शाता है “राज्य की अपने नागरिकों के प्रति प्रतिबद्धता, और जिम्मेदारी को |”

अगर कोई सरकार किसी दुर्दांत अपराधी को आरोप साबित होने के बाद भी जिन्दा रखती है तो वह अपने नागरिकों के साथ छल कर रही है | कसाब और अफजल गुरु एवं राजीव गाँधी के हत्यारों को जिन्दा रख कर सरकार यह साबित कर रही है की उसमे ना तो राजनैतिक इच्छाशक्ति है, और ना ही वह अपने नागरिकों के प्रति संवेदनशील है | अभी अमेरिका में एक डेविस नाम के आदमी को २२ वर्ष पूर्व की गयी हत्याओं के लिए मौत की सजा दी गई | भारत में भी ऐसा ही होना चाहिए |

मै मानवाधिकार वालों और महान समाज सेविका होने की नौटंकी करने वाली अरुंधती राय से पूछना चाहता हूँ कि अगर मुंबई में उनके परिवार का कोई मारा होता तो वे क्या कहती ??

फांसी इस देश के लिए बहुत जरुरी है और उससे भी जरुरी है इन आतंकवादियों को जल्दी से जल्दी गले में रस्सी लगा कर चांदनी चौक में टांग देना |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply