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भाग एक से आगे…
वह बूढी महिला सोच भी नहीं पाती कि तब – तक उसका ‘वह’ नेता उसे उसी प्रकार छोड़ कर आगे बढ़ गया, जिस प्रकार से उस बूढी महिला की उमर आगे बढ़ जाती है, जो लौट के फिर कभी नहीं आएगी |
चूँकि नेता आगे बढ़ चूका है इसलिए हम भी इस बूढी महिला 0के पास नहीं रुक सकते | हमें भी इस बूढी महिला को छोड़ कर आगे बढ़ना होगा | क्योंकि बूढी माहिला के चक्कर में हम भूल गए थे कि वह नेता उस गरीब आदमी के घर जा रहा है, जो आजकल भुखमरी के कगार पर है | इस तरह के औचक दौरों की सबसे खास बात यह होती है कि, ऐसे गाँवो में किसी को भी बड़े नेता के आने की भनक तक नहीं लगती | हाँ तो वह वह नेता लाव – लश्कर के साथ आगे ….और आगे बढ़ता जाता है | तभी अचानक ही वह नेता गाँव की धूल – मिटटी से भरी सड़क (अगर वह सड़क है तो ) बनाने वाले मजदूरों के पास रुक जाता है |
तब तक नेता, जो मजदूरों द्वारा पहनी गई सफ़ेद बनियान से भी सफ़ेद (गोरा) है, आगे बढ़ता है और एक मजदुर का फावड़ा थाम लेता है | इस बीच मीडिया की सतर्कता और बढ़ जाती है | अख़बारों के पत्रकार कैमरे के फ्लश चमकाने लगते हैं | नेता उस मजदुर से फावड़ा चलाने सम्बन्धी ज्ञान हासिल करता है | फिर वह भी फावड़े से मिटटी खोदने लगता है | देश का मीडिया और बुदिजीवी वर्ग भावना से ओत – प्रोत हो कर गदगद हो जाता है | इस बात को समझे बिना कि, जिस तरह से एक छोटे बच्चे को हर चीज़ चाहिए —जमीन पर रेंगने वाला सांप भी | उसी तरह की मानसिकता (सलाहकारों द्वारा उधार ) लिए हर चीज़ का आनंद लेने की खातिर यह तथाकथित उत्तराधिकारी अपने महल से बहार आ गया है |
खैर, नेता आगे बढ़ चुका है अतः हम भी बढ़ते हैं | कुछ देर बाद वह उस गरीब के झोपड़े तक आ ही जाता है | गरीब इस समय सेठ के खेतों पर काम करने गया है | नेता का एक विश्वासपात्र (पढ़े – चमचा ) भाग कर उस गरीब को बुलाने चला जाता है | झोपड़े के बाहर उसके बच्चे मिटटी में खेल रहे होते हैं | बच्चे इत्ते सारे लोगों और पुलिस को देख कर डर जाते हैं | बहार का हल्ला – गुल्ला सुन कर उनकी माँ झोपड़े से बहार निकलती है | अपनी धोती को नग्न कन्धों के पास से ठीक करते हुए वह एक सहमी सी नजर भीड़ पर डालती है | वह औरत भीड़ से एकदम अलग से दिखने वाले नेता पर निगाह डालती है, मगर वह उसे पहचान नहीं पाती | तब – तक नेता आगे बढ़ कर उस औरत से उसके पति का नाम लेकर पूछता है कि क्या यह उसका ही घर है?? घर इस शब्द को सुन कर वह औरत एक बार अपने झोपड़े को देख कर ‘हां’ में सिर हिलाती है | तब चमचे बताते हैं कि नेता जी देश के “युवराज” हैं | जल्दी ही परधानमंतरी भी हुई जायेंगे | और यह भी बताता है कि नेता जी उसके परिवार से ही मिलने के लिए ख़ास दिल्ली से पधारे हैं | यह सब सुन कर उस औरत कि आँखों में चमक बढ़ जाती है | उसके सूखे, बेजान और किसी को भी आकर्षित करने कि ksha खो चुके अधरों पर उम्मीद की एक मुस्कराहट आने को होती है, मगर तभी वह बीच में ही उसका साथ छोड़ देती है |
“एक गिलास पानी मिलेगा ?” नेता की आवाज़ से उसकी तन्द्रा भंग होती है | वह तेजी से पानी लाने के लिए अपने झोपड़े में भागती है | इधर नेता उसकी कामचलताऊ खटिया पर बैठ जाता है | वह औरत झोपड़े में एक अदत साबुत और गैर टेढ़ा – मेढा गिलास खोजने में कुछ वक्त लगाती है | थोड़ी देर बाद वह स्टील के थोडा पिचके और एतिहासिक से नजर आने वाले गिलास में पानी लाकर नेता को देने की कोशिश करती है | मीडिया के कैमरे हरकत में आ जाते हैं | वह नेता गिलास होटों से लगता है और दो घूंट पानी पी लेता है | मीडिया जगत में हलचल मच जाती है | गरीब औरत नेता के इस महान कृत्य पर गदगद हो जाती है | नेता इतने पर ही नहीं रुकता | वह उस गरीब औरत और उसके पति से (जो अब तक उस चापलूस द्वारा खोज कर लाया जा चुका है ) इस प्रकार बातें करता है, मानो वह उनका रिश्तेदार हो |
वह गरीब परिवार अपनी स्थिति पर — अश्रुपूरित नेत्रों से नेता को अपनी त्रासदी बताते हैं | नेता बहुत ही ध्यान से उनकी बातें सुनता रहता है | कुछ देर बाद वह उनके बच्चों से भी बात करता है | फिर चलते – चलते आश्वासन देता है कि, “यदि प्रदेश में उसकी पार्टी कि सर्कार होती तो उन्हें ऐसे दिन नहीं देखने पड़ते |”
इस आलेख के प्रारंभ में मैंने आपको एक लाईन ध्यान में रखने को कहा था | अब वापिस उसी लाईन पर आते हैं | नेता द्वारा की गई इस प्रकार की यात्राओं को उसकी पार्टी के वरिष्ठ नेता (पढ़ें – तलवे चाटने वाले ) कहते हैं, “यह भारत को समझने की प्रक्रिया का हिस्सा है |”
उक्त नेता (जिसे सभी जानते हैं ) की पार्टी लाईन के मुताबिक नेता की यात्रायें और दौरे, देश को समझने का, नजदीक से जानने का तरीका है | यक़ीनन, इस तरीके पर बुद्धिजीवी वर्ग और धर्मनिरपेक्षतावादी फ़िदा हैं | मीडिया इस तरीके को हाथों – हाथ लेती है, और टीवी पर बताया जाता है की इस नेता में अपने पिता व नाना वाली छवि है |
अब ध्यान दीजिये | इस नेता (पढ़ें – प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री ) को देश के गरीबों को समझने के लिए दिल्ली से दूर क्यों जाना पड़ता है ?? क्यों वे केवल और केवल दूसरी पार्टियों के ही द्वारा शासित राज्यों में ही जाना पसंद करते हैं ?? क्या उनकी पार्टी द्वारा पिछले तीन बार से शासित हो रही दिल्ली में सब ठीक है ? कोई गरीब नहीं है ??
नई दिल्ली में सड़क के बीचों – बीच बने डिवाईडर पर पुराने बोरे के ऊपर बैठा वह दो साल का बच्चा जो सूरज की रौशनी में कला पड़ गया था | जो इस छोटी उम्र में बिना कपड़ों के काम चला लेता है | जिसकी बहती नाक की उसकी माँ को कोई फिक्र नहीं होती | (फिक्र होती है तो इस बात की, कि कोई राहगीर उसके कटोरे में एक रूपये का सिक्का डाल दे ) जिस बच्चे के बेतरतीब बालों से उसके पिता को कोई समस्या नहीं होती | जिस बच्चे की आँखों में खिलौने और खेल के लिए इस छोटी सी उमर में ही कोई आस नहीं बची है | आस बची है तो सिर्फ इस बात की, कि उसको आज रात में खाने को क्या मिलने वाला है ? कही ऐसा तो नहीं कि उसका पिता खाना न ला पाए, और उसे कल रात की ही तरह आज की रात भी अपनी माँ की सूखी छाती से चिपक कर सोना पड़े ????
मैं बिलकुल भी नहीं समझ पता कि यह नेता जो खुद को भावी प्रधानमंत्री कहलाने पर एतराज नहीं करता | जो खुद के लिए “युवराज” संबोधन सुनना पसंद करता हो | उसे ऐसे लोग राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों क्यों नहीं नजर आते ?? कहीं ऐसा तो नहीं कि नई दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती उसकी तेज रफ़्तार गाड़ियों में वह अपने ब्लैक – बेरी फोन में ही उलझा रहता हो !!!
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