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राहुल गाँधी क्या खोजना चाहते है ?? भाग 1

Krishna Gupta
Krishna Gupta
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जैसा की शीर्षक से ही स्पष्ट हो गया कि यह आलेख किसके विषय में है, अतः अब उनका नाम लिए बिना ही बात को आगे बढ़ाते हैं |

प्रश्न है कि वे (नेता जी) गांवों का धूलधुसरित दौरा क्यों कर रहे है ? और इस प्रश्न का उत्तर (जो राजनैतिक गलियारों से ) है, “वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि भारत के आम आदमी से सीधी बात कर कर सकें | ताकि पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूती प्रदान कर सकें | ताकि संगठन को मजबूत कर सकें | ताकि उनकी पार्टी को सत्ता प्राप्त हो सके |”

“कुल मिला कर यह सारी कवायद पार्टी के होती है, न कि देश के लिए|” (इस लाइन को जरा ध्यान में रखियेगा )

चूँकि पार्टी को जमीनी जनाधार चाहिए | इसलिए गरीबों के बच्चों को गोद में उठा लिया जाता है | गरीबो के बच्चों के साथ जमीन पर बैठ कर उनकी थाली में खाना भी खा लिया जाता है | दरअसल इससे पार्टी का जनाधार मजबूत होता है | हांलाकि इससे उस गरीब को मीडिया अटेंशन के आलावा केवल मानसिक सुख की ही प्राप्ति होती है कि, “इतने बड़े नेता हमारे टुटहे घर में आये | वे बहुत ही सादगी पूर्ण नेता हैं, मैं तो इनको ही वोट दूंगा….. आदि – आदि – आदि |” इस सारी कवायद से पार्टी के छोटे कार्यकर्ता उत्साहित हो जाते हैं | कि इत्ते बड़े नेता हमारे गुमनाम से गाँव में आये | फिर वे पार्टी के लिए जी जान लड़ा देते हैं |

लेकिन इस सरे कार्यक्रम (पढ़ें – सर्कस ) में उस गरीब को सिर्फ मानसिक संतोष के आलावा और क्या प्राप्त होता है ??

किसी बहुत बड़े नेता के द्वारा किये गए इस तरह के औचक दौरों से उपरोक्त प्रकार के प्रश्न संभवतः पटल पर कम ही आ पते हैं | नेता का क्या है | वह तो अपने रुटीनानुसार किसी एक गाँव को नक़्शे पर उंगली रख कर चुनता है | फिर उसका सचिव बताता है कि ‘पड़ताल करने पर पता चला है कि अमुक गाँव में अमुक नाम का गरीब भुखमरी के कगार पर है | उसे परिवार नियोजन के बारे एक अक्षर भी जानकारी न होने से उसके पांच बच्चे हैं, जो प्रायः ही नंग – धडंग ही रहते हैं | (हाँ सर्दियों में वे चिथड़ों और बोरों से काम चला लेते हैं | लेकिन नेता को सचिव द्वारा ऐसी जानकारियां प्रायः न के बराबर दी जाती हैं |)

फिर नेता अपने लाव – लश्कर के साथ (मतलब 20 से 30 गाड़ियाँ लेकर ) उस गाँव की तरफ चल पड़ता है | अचानक तय हुए इस तरह के दौरों के बारे में उक्त प्रदेश (जिसमे वह नेता जा रहा होता है ) की सरकारों को तब पता चलता है, जब माननीय वहां पहुँच जाते हैं | (हांलाकि, अन्ना हजारे जैसे लोगों को अपने कार्यक्रम के लिए पाहे लिखित अनुमति की आवश्यकता होती है | मगर इन् जनाब नेता के लिए यह सब शर्तें नहीं होती |) आनन फानन में प्रदेश की सर्कार उनकी सुरक्षा के लिए अपने सिपाही (पुलिस) भेजती है | तब जा कर ज्ञात होता है कि अपनी 20 – 25 गाड़ियों में से आधी में वे S P G कमांडो भर कर आये हैं | तो साहब, फिर शुरू होता है इस सर्कस (म… मेरा मतलब था – कार्यक्रम ) का दूसरा भाग |

इसमें S P G कमांडो उस नेता के इर्द – गिर्द एक घेरा बनाते हैं | और पुलिस वाले दो कार्य करते हैं , प्रथम तो उस नेता और जनता के बीच बल्लियों द्वारा एक पृथकता रेखा खीच देते हैं | और दुसरे यह कि S P G कमांडो के घेरे के बाहर एक और घेरा बनाते हैं |

तो इस प्रकार यह कार्यक्रम (पढ़ें – सर्कस ) जरी रहता है | जनता हाथ हिला कर उस नेता से अपनी ओर नज़र भर उठाने की विनती करती है | और वह नेता नज़र के साथ – साथ हाथ उठा कर मुस्कुराते हुए उनका अभिनन्दन करता आगे बढ़ता रहता है | तभी, जब सारे पुलिस वाले और कमांडो, संदिग्धों की तलाश में निरीह जनता को शक की निगाहों से देख रहे होते हैं | अचानक ही वह नेता, बल्लियों के पार खड़ी पुरानी धोती में तन को ढकने की कोशिश करती एक बूढी महिला की ओर बढ़ जाता है | वह महिला थोडा सकपका जाती है | लेकिन तभी वह नेता नीचे झुक कर उस महिला के पैर छू लेता है | महिला की आँखों में आंसू आ जाते हैं | जिस नेता का उसने केवल नाम भर सुना था, कभी फोटू में भी ठीक से नहीं देख पाई थी | आज वाही बहुत बड़ा नेता उसके सामने खड़ा होता है | न सिर्फ खड़ा होता है, बल्कि नीचे झुक कर उसके पैर भी छू लेता है |

आप कहेंगे व्यर्थ की राजनैतिक चाल है उस नेता की, | लेकिन यहाँ मै आपसे सहमत नहीं | क्योंकि मै इस घटना को कहूँगा   “अप्रत्याशित |

थोड़ा ध्यान दीजिये, उस बूढी महिला की मनः स्थिति पर | अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर जबकि उसे पता है कि अभी त़क उसके गाँव में इतना बड़ा नेता पहले कभी नहीं आया | वह उसे दूर से एक बार देख लेने की लालसा लिये वहां तक आती है | उस बूढी महिला केलिए वहां तक पहुंचना कितना कष्टकारी रहा होगा | वह नंगे पैर है | धुप में अपनी उसी पुरानी धोती. सफ़ेद हो चुके बालों और झुर्रियों वाले चेहरे के साथ माथे पर हाथ रखे, ना मालूम किस आस में (असल में उसे भी नहीं पता कि वह किस आस में वहां जा रही है ), वहां तक बिना चप्पलों के भीड़ के साथ – साथ पहुँचती है | एक अदना सी बूढी महिला जिसकी तंगहाली पर कोई उसे दादी तक कहना पसंद नहीं करता, वहां तक पहुँचती है और किसी प्रकार पहली पंक्ति में कड़ी हो जाती है |

वह अभी भी माथे पर अपना दाहिना हाथ रखे है | क्योंकि चिलचिलाती धुप और गर्मी कि प्यास उसे बेहाल कर रही है | लेकिन वह अभी भी, उस नेता कि एक झलक को व्याकुल है | क्योकि उसे सुना है कि वह गरीबों से हमदर्दी रखता है | वह गरीबों कि टुटही खटिया पर सो भी जाता है | आज वही ‘वह’ उस बुढिया के पैरों में झुक जाता है | “अप्रत्याशित |” | निश्चय ही यह घटना उस बूढी महिला कि आशाविहीन आँखों में अश्रु ला देता है | वह नेता उस बेचारी का हाथ थम लेता है | बूढी महिला भाव – विह्वल हो उठती है | उसका हलक सुख जाता है |

तभी इस सारे भावातिरेक रोमांच में व्यवधान पड़ता है | पुलिस वाले और S P G कमांडो तेजी से उसी और बढ़ते हैं | नेता को कवर रही मीडिया और नेता के पीछे चलते छोटे – मोटे नेताओं (पढ़ें – चापलूसों ) में हल्ला हो जाता है | टेलीविजन पर सीधा प्रसारण देख रहे दर्शको को ब्रेकिंग न्यूज़ के माध्यम से बताया जाता है कि, नेता ने सुरक्षा घेरा तोड़ दिया | वह भी अदना सी एक बूढी महिला के लिए | अपने ड्राइंग रूम में A C की हवा खा रहा बुद्धिजीवी वर्ग “वाह” कह उठता है | माध्यम वर्गीय लोग जो टीवी पर यह प्रसारण देख रहे होते हैं, वे आश्चर्यचकित हो कर कहते हैं – ‘यह गरीबों का नेता है |’

तब तक उस बूढी महिला का हाथ उस बड़े नेता को आशीर्वाद देने के लिए उठता है | मगर इससे पहले कि वह महिला उस नेता के सिर पर हाथ रख पाती , वह नेता वापिस अपने सुरक्षा घेरे में चला जाता है |

भीड़ जिंदाबाद के नारे लगाती है | मीडिया उस बूढी लाचार महिला कि फोटू खीचता है | और काफिला (पढ़ें – सर्कस ) आगे बढ़ जाता है | नेता अपने मिशन व एजेंडे पर वापिस आ जाता है | मगर वह बूढी महिला अभी भी उसी प्रकार अवाक् सी खड़ी रह जाती है | वह इस साडी घटना से गदगद हो जाती है | आस – पास खड़े लोग उसे भाग्यशाली बताते हैं, जो बड़े नेता ने उसके पैर छू लिए |

अगले भाग में समाप्त

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