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धर्मनिरपेक्षता का पाखंड

Krishna Gupta
Krishna Gupta
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भारत में सेकुलरवाद शब्द का जितना प्रयोग होता है, उतना शायद पूरी दुनिया में नहीं होता होगा | लोग इस अतथ्यात्मक बात से सहमत हों या ना हों, किन्तु मेरी इस बात से जरुर सहमत होगे कि Communalism (साम्प्रदायिकता) शब्द का प्रयोग भारत से ज्यादा कही नहीं होता |

भारत में जितना आसान है सेकुलर होने का दंभ भरना; कमोबेश उतना ही आसान है खुद पर साम्प्रदायिकता का ठप्पा लगते हुए देखना | यकीन न हो तो एक बार अफजल गुरु के विषय में निम्न बातें कह कर देखिए :
“भारतीय न्यायिक प्रक्रिया सबसे ख़राब प्रक्रिया है | हम इस पर भरोसा नहीं करते | और ना ही दिल्ली की भ्रष्ट पुलिस पर करते है | अफजल गुरु के मामले में की गई न्यायिक प्रक्रिया महज एक दिखावा है |”
तुरंत ही ऐसे अमूल्य कथन पर ( जो कि महान समाज सेविका ? मानवाधिकारवादी ? सम्मानित लेखिका ? अरुंधती रॉय ने व्यक्त किये थे |) आपको सेकुलर होने का सार्टीफिकेट मिल जायेगा |
लेकिन यदि आप “वन्दे मातरम” कहते है तो आप आर एस एस के आदमी है, ( मानो आर एस एस के पास वन्दे मातरम का कापी राइट हो ) | यदि आप “भारत माता कि जय ” बोलते है | तब तो पक्की बात है कि आप भगवाकरण को बढ़ावा दे रहे है | आप देश से गंगा – जमुनी तहजीब को नष्ट कर देना चाहते है | आप मुसलमानों से नफरत करते है, आप इस्लाम के खिलाफ लोगो को गोल बंद करना चाहते है | आप हिन्दू – अतिवादी है, कट्टरवादी है, और सांप्रदायिक तो आप है ही |
बात अगर यही इतने पर समाप्त हो जाती तो कोई खास बात नहीं थी | लेकिन समस्या यह है कि भारत में जो धर्मनिरपेक्ष तबका है वह Antihinduism ( घोर हिन्दू विरोध ) को ही धर्मनिरपेक्षता मानता है | यदि कोई हिन्दू हित कि बात करता है तो तुरंत ही वह इस तबके के द्वारा सांप्रदायिक होने के आरोपों से लबरेज कर दिया जाता है | वे चाहते है कि हम अपनी लाखों वर्ष पुराणी परम्परा से कट जाएँ | सोचने वाली बात है कि ऐसा कौन लोग चाहते है ? वे जो उस परम्परा को पोषित करते है जों हिंदुत्व के खिलाफ है | अब आप कहेंगे “अतिरेकता |” लेकिन मै कहूँगा “उनकी घृणा |” वे हमसे इतनी घृणा और इर्ष्या क्यों करते है ? जवाब साफ़ है :
१: वे अपनी एक मात्र पुस्तक को बंदरिया के मर चुके बच्चे सा, सीने से लगाये इतराए चले जाते है | जबकि हमारे पास ज्ञान के अनगिनत ग्रंथों कि पूरी श्रृंखला है |
२: वे अपने विज्ञान के ज्ञान पर फुले नहीं समाते | मगर कहीं गहरे में उनको भी यह बात खाने को दौड़ती है कि जिस विज्ञान पर वे इतरा रहे है, उसकी जड़ें भी भारतीय ज्ञान में ही मौजूद है |
३: पाश्चात्य दार्शनिक (महान) इमानुअल कांट ने अपने शोधों के जरिये यह सिद्ध कर दिया था कि ‘हम बुद्धि कि वज्र दीवार के उस पार नहीं जा सकते |’
लेकिन क्या ही आश्चर्य, कि , “बुद्धि के उस पार क्या है ?” इसी एक प्रश्न पर पूरा भारतीय दर्शनशास्त्र खड़ा है |
४: जब उनके पूर्वज पश्चिमी देशों में भोजन कि तलाश में खानाबदोश जीवन जी रहे थे | तब उसी काल में भारत वेदों के ज्ञान से जगमगा रहा था |
५: आज भी वे comupter से जाच पड़ताल करने के बाद महज अनुमान लगा पाते है कि संभवतः अमुक समय पर सूर्य / चन्द्र ग्रहण शुरू होगा | जबकि हमारे यहाँ कोई साधारण पंडित भी पत्रा देख कर पूरी प्रमाणिकता से बताता है कि अमुक समय पर ग्रहण प्रारंभ हो जायेगा | और होता भी वैसा ही है |
६: आज भले ही पूरी दुनिया ने उनका कैलेन्डर अपना लिया हो | तो भी उनके ही वैज्ञानिक मानते है कि भारतीय कैलेन्डर ही सबसे शुद्ध और प्रमाणिक है |

अब जबकि सर्वोच्च न्यायलय कह चूका है कि, “हिन्दुत्त्व एक जीवन पद्धति है |” वे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग हिंदुत्व की लानत – मलानत करने से बाज नहीं आते |
आखिर इनको हिंदुत्व से इतनी नफरत क्यों है ? M F हुसैन के मामले पर ‘अभिव्यक्ति कि स्व्तत्न्त्रता’ का संवैधानिक हवाला दिया जाता है | लेकिन यही सारे धर्मनिरपेक्ष लोग सलमान रुश्दी के मामले पर संविधान को ताक पर रखते हुए, ‘उनको जान से मरने के फतवे पर मौन व्रत रख कर सिर्फ तमाश देखते रहे | और रुश्दी को भारत छोड़ कर ब्रिटेन में शरण लेना पड़ा था | उस समय इनकी धर्मनिरपेक्षता नामालूम कहा चली गई थी जब तसलीमा नसरीन को भारत छोड़ने पर विवश होना पड़ा था |
जब हिंदुत्व का मामला होता है तो ये सभी धर्मनिरपेक्ष लोग कोरस में शोर करना आरंभ कर देते है | लेकिन जब मामला इस्लाम या चर्च से जुड़ा होता है, तब यही सारे धर्मनिरपेक्ष लोग कही अंधियारे में किसी बिल में छुप जाते है | और अगर कोई उनके इस छद्म व्यव्हार पर ऊँगली उठता है, तो वह तुरंत ही सांप्रदायिक हो जाता है | हिंदुत्व के प्रति इनका यह व्यहवार समझ के परे है |
यदि कोई इनके इस सारे तमाशे को, इनकी इस कुटिल कूटनीति को, इनके इस छदम धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को देख कर चुप रहता है, तो वह भी धर्मनिरपेक्ष है | लेकिन यदि कोई इनको, इनकी गलती का अहसास करता है | इनके इस व्यहवार पर आपत्ति करता है | इनके इस रवैये पर प्रश्न खड़े करता है, तो वह सांप्रदायिक है, भगवाकरण को बढ़ावा देने वाला आर एस एस का एजेंट है |
मुझे पता है कि इस विषय पर केन्द्रित हो कर लेख भर लिखने मात्र से, मै भी इस तथाकथित धर्मनिरपेक्ष समाज का शत्रु हो जाऊंगा | लेकिन मुझ पर आरोप लगाने से पूर्व, मै उन्हें मुफ्त कि सलाह दूंगा, कि वे थोडा सा और इंतिजार कर लें | क्योंकि मेरे द्वारा लिखित एवं सम्पादित कुछ और लेख, जो निकट भविष्य में प्रकाशित होने वाले है, को पढने के बाद वे मुझ पर मात्र सांप्रदायिक होने के आलावा — अलोकतांत्रिक , हिटलर का समर्थक, फासीवादी, नाजीवादी एवं हिन्दू – अतिवादी होने का आरोप भी लगा पाएंगे |

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