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भारत में नेता के लिए नैतिक होना आवश्यक नहीं होता. आवश्यक होता है तो बस इतना की वह चुनाव जीत सकता है या नहीं. और उसे चुनाव जीतने के लिए क्या क्या पापड़ बेलने होंगे.
दरअसल नैतिकता ऐसी चीज है जो आपके भीतर कहीं से आती है. इसके लिए आप को किसी स्कूल में addmition कराने की आवश्यकता नहीं होती. यह तो आपके खून में होता है.
मगर आज काल तो पोलिटिक्स में देखा जा रहा है कि किसके खून में नेहरु गाधी परिवार का नाम जुदा है. योग्यता पर परिवारवाद हावी हो गया है. वर्ना अगर राहुल किसी सामान्य परिवार में पैदा हुए होतो तो शायद कोई उनका नाम भी न जनता.
विडंबना यह है की राहुल जैसे लोग जो परिवार के कारण राजनीति में आये, वे भी यदि चाहते तो इस कीचड़ को साफ़ करने के लिए आगे आ सकते थे. मगर उन्होंने इसके बजाय वही चुना जो केवल उनके लिए फायदेमंद हो. वह देश के विषय में, या तो नहीं सोचना चाहते या फिर वे इतने काबिल ही नहीं.
लोकतंत्र की तमाम अच्छाइयों के बावजूद इसकी खामियों से इंकार नहीं किया जा सकता. कैसे भी करके हमे मज़बूरी में ही सही इसे घसीटना ही होगा. क्या पता कब कोई अच्छा नेता समे आ जाये, जिसमे सत्ता को अपनी मुट्ठी में करने की छमता हो.
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