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एक कहावत है की यदि किसी समस्या की जड़ तक पहुचना हो तो, वहा से शुरुआत कीजिये जहा से वह जन्म लेती है. यह बात अस्तित्व में तो आती है किन्तु समस्या यह है की यह व्यवस्था भी भ्रष्टाचार जैसे दावानल के सामने छिन्न भिन्न हो जाती है. क्योंकि भ्रष्टाचार ऐसा असुर है जिसके ढेर सरे हाथ और पैर हैं. यह सभी ओर व्याप्त है. यह सभी ओर व्याप्त है. यह शैतानियत का ऐसा देवता है जो हर कहीं व्याप्त है. यदि हम यह खोजने जायेंगे कि भ्रष्टाचार का जन्म कहाँ से होता है अथवा कि भ्रष्टाचार को पोषण कहाँ से प्राप्त होता है; तो हम खली हाथ ही वापस आयेंगे.
कारण यह कि भ्रष्टाचार कोई जीव नहीं है, जिसे चूहेदानी लगा कर रोका जा सके. यह एक विचार है. और विचार पर अंकुश लगाना लगभग असंभव होता है. यह हम सभी जानते हैं. भ्रष्टाचार एक ऐसा विचार है जो बहुत ही तेजी से दूसरों में संक्रमित होता है. एस पर vyapak बहस कि आवश्यकता है.
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